जैव भूगोल का महत्तव / IMPORTANCE OF BIOGEOGRAPHY

जैव भूगोल का महत्तव 

( IMPORTANCE OF BIOGEOGRAPHY  )



                    वर्तमान समय में जेव भूगोल के अध्ययनों का निम्न्लिखित क्षेत्रो में महत्तव है -


1. वन्य जीवन तथा प्रस्थितिकी संतुलन - जैव भूगोल प्रकृति के अभिन्न अंग वन्य जीवन से घनिष्ट  रूप से जुड़ा है।  वन्य जीवन पौधे तथा जीव जंतु  जैविक , आर्थिक सांस्कृतिक व सौंदर्यात्मक (Aesthetic) मूल्य रखते है।   प्राकृतिक में वन्य जीवन मकी लाखो प्रजातियां पृथ्वी की सतह पर निवासित है तथा प्रत्येक जैव प्रजाति प्रकृति में विशिष्ट जैविक  भूमिका निभाती हुई प्रकृति के संतुलन  स्थापन में  सहयोग करती है।  यह संतुलन खाद्य श्रृंखलाऔ के माध्यम से  स्थापित्त होता है  अदि किसी भी प्रकार से वन्य जीवन में होने वाली हानि उस क्षेत्र विशेष के प्रस्थितिकी तंत्र में असंतुलन उतपन्न होता होता है जो उससे वन्य जीवन की  अन्य प्रजातियों के अस्तित्व पर  संकट आ सकता है। अतः जैव  भूगोल के अध्ययन से प्रस्थितिकी  तंत्रो में मानव द्वारा या प्रकृति  द्वारा होने वाली किसी भी तरह की हानि को ज्ञात सकता है, तथा इसकी क्षतिपूर्ति के लिए आवश्यक प्रयास कर प्रस्थितिकी संतुलन  कायम रखा जा सकता है।  



2. प्राकृतिक संसाधनों का अतिविदोहन एवं संरक्षण - जैव भूगोल विभिन्न पारिस्थितिकी तंत्रो के जैविक प्राकृतिक संसाधनों के वितरण  प्रतिरूपों का अध्ययन करता है। जैव भूगोल के अध्ययन की सहायता से पारिस्थितिकी तंत्र के उपलब्ध पादप व जंतु संसाधनों की उपलब्धता का स्तर ज्ञात होता है। यदि मानवीय क्रियाकलपो द्वारा उस पारिस्थितिकी तंत्र के पादप व जन्तु संसाधनों का अति विदोहन किया जा रहा है तथा इस अति विदोहन से अनेक पर्यावरणीय संकट उस पारिस्थितिकी तंत्र में उत्तपन्न हो जाते है जैव भूगोल के अध्ययन के माध्यम से पादप व जन्तु संरक्षण व प्रबन्धन के प्रभावी उपायों को प्रस्तुत किया जा सकता है।  वस्तुत: जैव भूगोल के सिद्धांत पादप व जंतुओं के निर्मम विदोहन व विनाश जनित दुष्परिणामों को न्यूनतम करने में मूल्यवान सिद्ध हो सकते है। 

इसके अलावा पारिस्थितिकी तंत्र में विलुप्त होने के कगार पर खड़ी जैव प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए समुचित संरक्षण प्रदान किया जा सकता है।  इसके लिए वन्य जीव राष्टीय पार्क एवं सेन्चुरी की उपयुक्त स्थलों पर स्थापना सम्बन्धी सुझाव प्रस्तुत किये जा सकते है।  



3. भूमि उपयोग - जैव भूगोल मृदा की गुणवत्ता का अध्ययन भी सम्मिलित होता है मृदा की गुणवता के आधार पर यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि एक भूमि क्षेत्र किस कृषि फसल के उत्पादन के लिए अनुकूल है या उस पर घास क्षेत्र  या वन क्षेत्र को विकसित कर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है 



4. अन्य - 

(i) जैव भूगोल का अध्ययन पादपों तथा जंतुओं की किसी प्रजाति के लिए किसी क्षेत्र विशेष के  पारिस्थितिकी संभानाओं को मूल्यांकित करने में सहायक होती है 


(ii) किसी पारिस्थितिकी तंत्र में किसी विशिष्ट प्रजाति की वृद्धि या विलुप्त होने के लिए उत्तरदाई  प्राकृतिक तथा मानवीय कारको के विश्लेषण में सहायक मिलती है।  


(iii) जैव भूगोल की अध्ययन से किसी पारिस्थितिकी तंत्र में निवासित विशिष्ट प्रजाति के जीवों तथा समस्त जीवधारियों  के स्थानिक व कलिक सम्बन्धो का विश्लेषण करने में सहायक मिलती है। 


(iv) किसी क्षेत्र में निवासित जीवों के वितरण के अध्ययन से उस क्षेत्र की पर्यावरण दशाओं के अध्य्यन में सहायता मिलती है क्योकि किसी क्षेत्र में जीवों के विभिन्न स्वरूपों का वितरण उस क्षेत्र की पर्यावरण दशाओं का का एक संकेतक मन जाता है।  







                                                





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