जैव भूगोल का कार्यक्षेत्र /जैव भूगोल में क्या क्या काम किया जाता है / scope of biogeography

 जैव भूगोल का कार्यक्षेत्र 

        (SCOPE OF BIOGEOGRAPHY ) 

जैव भूगोल में क्या क्या काम कर सकते है जैव भूगोल का घनिष्ठ सम्बन्ध पादप तथा जंतु जीवन के भौगोलिक पक्षों विशेष के रूप से उनके विवरण के अध्ययन से होता है।  जीव भूगोल के विषय क्षेत्र  को  निम्न्लिखित दो  शाखाओं  अंतर्गत किया जाता है 


                                                    1. पादप भूगोल (Plant Geography)

                                          2. प्राणी भूगोल (Animal Geography) 


जैव भूगोल का कार्यक्षेत्र अभी तक स्पष्ट रूप सीमांकित नहीं किया जा सका है।  कुछ भूगोलवेत्ता इसके विषय क्षेत्र को केवल पादप भूगोल तथा प्राणी भूगोल तक सिमित रखते है।  जबकि अन्य भूगोलवेत्ता जैव भूगोल में मिट्टी तथा मानव भूगोल के कुछ पक्षों के अध्ययन को भी  पादप व प्राणी भूगोल के अध्ययन के साथ सम्मिलित करते है। 


पी. डेन्सराओ (P . Dansereau) ने अपनी पुस्तक ' Biography : An  Ecological  Perspective ' में जैव भूगोल के कार्यक्षेत्र के सन्दर्भ में कहा की जैव भूगोल का कार्यक्षेत्र पादप परिस्थितिकी (Plant Ecology), जन्तु पारिस्थितिकी  (Animal Ecology) तथा भूगोलिक अध्ययन  अलावा आनुवांशिकी (Genetics),  मानव भूगोल (Human Geography), मानवशास्त्र (Anthropology) तथा सामाजिक विज्ञानो के अध्ययन क्षेत्र को भी समाहित रखता है। 



एच. एस. गर्ग  का मानना है की जैव भूगोल के कार्यक्षेत्र में उक्त तीन जैव भूगोल की शाखाओं के अलावा निम्न्लिखित 4 शाखाओं के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाता है 


                   1. सागर जैव भूगोल (Marine Biogeography)जीव भूगोल के इस शाखा के अंतर्गत  विशिष्ट सागरीय पर्यावरण रखने वाले विभिन्न सागरीय जैव कटिबन्धों में निवालित सागरीय जीवों के स्थानिक वितरण प्रतिरूप तथा उनके पर्यावणिया अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। 


                    2. द्वीपीय जैव भूगोल (Island Bio-Geography) जैव भूगोल की इस शाखा में सागर मे विस्तृत विभिन्न द्वीपों पर निवासित पौधों व जीवो के उद्भव व वितरण व प्रतिरूप का अध्ययन उस द्वीपों की  पर्यावरणीय दशाओं के संदर्भ में किया जाता है।  



                    3 पारिस्थितिकीय  जैव भूगोल (Ecological Bio-geography)-पारिस्थितिकी जैव भूगोल के अंतर्गत पृथ्वी की विभिन्न पर्यावरणीय दशाओं में निवासित जन्तुओ तथा पौधों के अपने पर्यावरण से अन्तर्सम्बन्ध व अंतक्रियाओं व अनुकूलन दक्षता का अध्ययन किया जाता है।  कॉक्स एवं मूर का मानना है की जैव भूगोल की यह शाखा जीवधारियों की जातियों तथा उपप्रजातियों के स्थानिक वितरण प्रतिरूपों का लघु समयावधि पारिस्थितिकी पक्षों का अध्ययन करती है। 


                        4. ऐतिहासिक जैव भूगोल (Historical Biogeography)- कॉक्स एवं मुरे के अनुसार, जैव भूगोल की इस शाखा की में पौधों तथा जन्तुंओं के भूगोलिक के भूगर्भिक समय कल में उद्भव, प्रक्रियाऔ , विसरण, वितरण तथा विलोपन का अध्ययन किया जाता है 


 


                            समान्य रूप से जैव भूगोल के कार्यक्षेत्र में निम्नलिखित पक्षों का अध्ययन सम्मिलित है --

1. भूपटल पर पौधों तथा जंतुओं का वितरण प्रतिरूप तथा उसमे मिलने वाले कारन - प्रभावो का अध्ययन। 

2. भूपटल के विभिन्न प्रस्थितिकी तंत्रो तथा प्रस्थितिकी कारको का समग्र अध्ययन तथा जैव - भू -रासायनिक चक्र।  

3. पौधों तथा जंतुओं के वितरण पर प्रस्थितिकी कारको का प्रभाव।  

4. पौधों ठगा जंतुओं का विसरण व विलोपन। 

5. पौधों के विभिन्न जीवो का भौगोलिक अध्ययन।  

6. जैव विविधता से जुड़े भौगोलिक पक्षों का अध्ययन। 

7. मृदा निर्माण , अपरदन, प्रबंधन तथा संरक्षण।  






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THANK YOU 

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6 टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
Thank you for this
Unknown ने कहा…
This is a good information for geography student's nd also for other students....... 😊
Thanks🙏
Unknown ने कहा…
Thanks you for this
Unknown ने कहा…
Bahut achha h nice

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